जितिया कथा (थारु भाषामा)

शुक्रबार १३ भदौ २०८२
काठमाडौ / प्राचीन समयमे उत्तरी भारतीय प्रायद्वीपमे सारीवाहन नामके एकटा महाप्रतापी तथा धर्मात्मा रजा रहै । वकरा राजकुमारी मसवासी नामके एकटा बेटी रहै । मसवासी सेहो बापे समान महाधर्मात्मा रहै । जब राजकुमारी जवान भेलै त वकर बियाहले रजा राजकुमार खोजे लागलै । मगर जब यी बात राजकुमारीके थाह भेलै त राजकुमारी बियाह नै करै के प्रस्ताव राखल्कै । मसवासी कहल्कै हमरा राजमहल से बाहर एकटा कुटी बन्यादे, वहै कुटीमे हम रहबै और भगवानके भजन-भाव करैत रहबै । पहिने त रजा बेटीके प्रस्ताव सुइनके आश्चर्यचकित भेलै तथा रजा बेटीके बहौत समझैल्कै मगर जब मसवासी आपन हठ नै छोरल्कै त रजा मसवासीके इच्छे अनुसार राजमहलसे बाहर लदी किनारमे एकटा कुटी बन्या देल्कै । अकर बाद मसवासी आपन कुटीमे रहे लागलै और वहै किसिमसे आपन जीवन बिताबे लागलै ।
मसवासी सुरुज उगैसे पैहिने अन्हारे उठै और लदीसे अन्हारे लहायके आबै और पूजापाठमे लिन भ्या जाय । उ कोनो पुरुषके मुँह तक नै देखै । एवम् किसिमसे कुछ समय बितलै । एक दिन दुर्भाग्यबस मसवासीके उठैले अबेर भ्या गेलै जै चलते जब मसवासी लहायके लदीसे घुमलै त सुरुज उइग गेल रहै और वकर प्रकाश मसवासीके शरीर पर परलै जै कारण मसवासी गर्भवती भ्यागेलै । एक कान दुई कान बयावान । रजा जब यी बात सुनल्कै तब वकरा बड दु:ख भेलै, मगर करतै त करतै की ? रजा मन माइरके रैह गेलै ।
बहौत गाइर-माइर सहैत नौ महिनाके बाद मसवासी एकटा बालकके जन्म देल्कै । बालक बहौत बिलक्षण स्वभावके रहै । समय बितैत गेलै और बच्चा पैध हैत येलै । परोसके अन्य बालकसाथ वहो बाहर खेले जाय । लेकिन उ केहेन रहै जे कोनो बच्चाके कोनो चीजमे नै जिते दै, तहै दुवारे सब कोई वकरा अनेर्वा मात्रे नै कि जितुवा सेहो कहै । एक दिन सब छौरा सब जितुवाके हराबैले योजना बनैल्कै और योजना अनुसार अन्हरा अन्हरीके खेलके रचना केल्कै जकर शर्त रहै जे मैयाके नाम ल्याके अन्हरा-अन्हरीके घरमे ढुक और बापके नाम ल्याके घरसे बाहर हो । जितुवा सेहो खेलमे भाग लेल्कै । उ मैयाके नाम ल्याके घरमे ढुकलै मगर बापके नाम ल्याके बाहर नै हेवे सकल्कै कथिले त वकरा बापके नाम जे थाह नै रहै । वकरा घरे भितरे मे रहे परलै । सब छौरा सब हाँसे और कहे देखिही हौ आब अनेर्वा घरे भितरमे रहतै । कुछ साथी सब जितुवाके घरमे ज्याके मसवासीके यी बात कहल्कै और मसवासीके बड दु:ख लागलै । मसवासी दौडके बेटा लग येलै और कहल्कै तोहर बापके नाम सुरुज चियौ तब जितुवा बापके नाम लेल्कै और अन्हरा-अन्हरीके खेलसे बाहर भेलै या आपन घर येलै ।
मगर सबके विश्वास नै है जे जितुवाके बाप सुरुज चियै । जितुवा के आपनो ने विश्वास हेवे। तै दुवारे जितुवा बापके भेटैले संकल्प केल्कै और यी प्रस्ताव महताइर लग राखल्कै जे हम बाप के उदेश करे जेबै । महताइर बहौत समझैल्कै जे बाप लग नै ज्यासकविही, तो जैरके भषम भ्या जेबही, से नै जो । मगर जब जितुवा आपन हठ नै छोरै बाला भेलै तब जितुवाके महताइर जितुवाले सिधा-सामलके व्यवस्था क्यादेल्कै और तब जितुवा सुरुज (बाप) लग जायले प्रस्थान केल्कै ।
कुछ दिनके यात्रा पश्चात सुरुज सोचल्कै जे जितुवा हमर आइगसे जैरके भषम भ्या जेतै, तै दुवारे सुरुज भगवान लोगके भेषमे रास्तामे जितुवाके दर्शन दैले सोचल्कै और तब सुरुज लोगके भेषमे जितुवा लग आइबके कहल्कै रे बाबु तो के चिही और कते जाय चिही ? जितुवा आपन सारा बृतान्त वै लोगके कहल्कै । तब उ लोग कहल्कै बौवा घुर, घर जो, तो नै ज्या सकविही, जैरके भषम भ्या जेबही से घुम, घर जो । मगर जब जितुवा आपन हठ नै छोरैवाला भेलै तब सुरुज कहल्कै रे बाबु हमही सुरुज चियै, हमही तोहर बाप चियौ से तोरे खातिर हम लोगके भेषमे अते येलियौ, जो घुम, घर जो ।
तब जितुवा कहल्कै ठीक छै हम घर जेवै लेकिन के विश्वास करतै जे जितुवा बाप लग गेल रहै ? तब सूरुज जितुवाके आशीर्वाद देल्कै जे जो मृतभुवनमे सबके सोर क्या दिहै जे आब से जे बिबाहित जनाना जितिया व्रत अर्थात् जितुवा(जितमहान) के व्रत लेतै और निमपूर्वक ब्रत समापन करतै अर्थात् आसिन अन्हैरिया सतमी तिथि सैन दिनके लह्याके खेतै, रैब दिन अठमी तिथि पुरे उपास बैठके जितियाके कथा सुनतै या सोम दिन नमी तिथिमे विधिवत पारन करतै त वै पवैनकरनी सबके बाल-बच्चा चिरंजीवी, दीर्घायु, सफल, वीर तथा बलवान हेतै और आई से तोहर नाम जितुवा नै तोहर नाम जितमहान भेलौ, सुरुज कहल्कै ताब जितुवा बापके बातमे विश्वास क्याके घर लौटलै और सबतर यी बात सोर क्या देल्कै । कुछ दिनके बाद ठीक समय येलै और वै राज्यके सब बिबाहित जनाना सब नियम निष्ठापूर्वक जितिया ब्रत लेल्कै और सबके वै किसिमके नीक फल भेटलै और ताब से यी ब्रत जितिया ब्रतके रुपमे थारु समाजमे खौब प्रचलित भ्याके आइ थारु समाजके एकटा महान तथा महत्वपूर्ण संस्कृति बैन गेलै । धन्यवाद ।
कथा समाप्त ।
भुलाई चौधरी
अध्यक्ष
थारू भसा साहित्य केन्द्र नेपाल
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