मुना चौधरीको थारू भाषाको कविता “गिरहत”


सोमबार १२ फागुन २०८१
हम गिरहत
हमर साथी कोदाइर, हसुवा, पसनि या ढकिया ।
हमर पहिचान हर, बरद
हम गर्व करै चियै आपन काममे
हम खुसी चियै आपन पहिचानसे ।
हमर उब्जेलहा अन ख्याके जिरल छै यी दुनिया
हम यै संसारके जीवनदाता
चरचर बेमा फाटल टाङ ल्याके
भुख, पियास नै बुइझके
निकलै चियै सैब चिज त्याइगके खेत ।
लाल पियर से बेसी हमरा हरहियर रङ निक लागैये
कथिले त हमर बाइल बिरहि हरहियर हैछै त
हम खुसी से पुलकित हैचियै ।
हमरा राइत से निक दिन लागैये
दिन से निक
डगडग हरहियर या पाकल धान, गहौम या बाइल बिरहि निक लागैये ।
हम गिरहत
रौदी से निक हमरा पाइनझाइर लागैये
गर्मीसे निक हमरा जार लागैये
कथिले त वर्षामे धान रोपै चियै या जारमे धान काटै चियै ।
प्रेम छै हमरा धान, चौरसे भोरल कोइठसे
स्नेह छै हमरा पसिनासे भिजल हाथसे
हमरा मात्रे करममे विश्वास लागैये ।
हमरा हमर पसिनामे विश्वास छै ।
हमर पगरी हम कैहियो ने झुकैले देबै
हम अइ संसारमे आदमीसबके भुखे कैहियोने मोरे देबै ।
हम गिरहत
हमर पहिचान चियै परिश्रम
हमर आत्म विश्वास चियै मेहनत ।
मुना चौधरीको फेसबुकबाट सभार
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