थारू भाषाको कविता “गोरहा”

मुना चौधरी
आइतबार १७ चैत २०८१
यी चियै गोरहा
गोरहैनी
चिपरी
यी सैब गोबरसे बनल छै ।
जार मैहना गोरहा बनाइछै
गुमार मैहना गोरहैनी बनाइछै
बारहो मास चिपरी बनाइछै ।
गोरहा घर पछारी के बारीमे
या आइरमे बनाइछै
गोरहाके छोहा कहै छै
गोरहा बन्याके छोहामे सुखैले दैछै
गोरहैनी गाहली या दरबजामे बनाइछै
गोरहैनी पाइनझाइर मैहना बनाइछै
पाइनझाइरसे नै भिजे कैहके
घरके भित्ता ने त चनमारमे सुखाइछै ।
बिचमे सन्ठि राइखके
गोरहा, गोरहैनी बनाइछै
गोरहाके दुनु दिसरा मुर रहैछै
गोरहैनीके मुर नै रहैछै
चिपरी थोपल थापल रहै छै
चिपरी हाथमे थोइपके
भित्तामे साइटके सुखैले दैछै ।
गोरहा गोरहैनी या चिपरी
तिनोके बनावट फरक हैछै लेकिन
तिनो आइग बारैले
आइग तापैले या
खाना बनाइले
प्रयोग करैछै ।
गोरहाके आइग
बेसी सयमतक टिकैछै
गोरहैनी या चिपरीके आइग
कम समयतक टिकैछै
हँ यी चियै गोइठा, गोरहा,
गोरहैनी या चिपरी ।
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